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हरियाणा में BJP ने किए एक तीर से दो शिकार, क्या फायदा दिलाएगी चुनाव से पहले CM बदलने की स्ट्रेटजी?

हरियाणा में BJP ने किए एक तीर से दो शिकार, क्या फायदा दिलाएगी चुनाव से पहले CM बदलने की स्ट्रेटजी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 घंटे पहले जिन मनोहर लाल की जमकर तारीफ की थी,  वही खट्टर आज अपने ही करीबी नायब सिंह सैनी को नए मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद देते नजर आए. यूं तो भाजपा जहां भी सीएम बदलती है, वहां पर सब शांति से हो जाता है लेकिन हरियाणा में बदलाव यूं ही नहीं हुआ है, उसके पीछे कई वजहें बताई जा रही है. 

बीजेपी ने गुजरात में मुख्यमंत्री बदला और चुनाव में जीत मिली. त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदला और चुनाव बीजेपी जीती. उत्तराखंड में तो दो-दो सीएम बदले, जीत बीजेपी की हुई. लेकिन कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदला तो भी जीत बीजेपी नहीं पाई. ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हरियाणा में मुख्यमंत्री बदलने से बीजेपी को कितना फायदा होगा.

इन सवालों के अनसुलझे जवाब

मनोहर लाल की सीएम पद की कुर्सी से विदाई की पटकथा हरियाणा में उसी तरह लिख दी गई, जैसे साढ़े नौ साल पहले पहली बार ही विधायक बने मनोहर लाल खट्टर को सीधे मुख्यमंत्री बना कर लिखी गई थी. सोचिए कि 2019 में जिस हरियाणा में बीजेपी ने 10 की 10 लोकसभा सीटें जीती थी वहां चुनाव से पहले मुख्यमंत्री क्यों बदले गए ? जिस हरियाणा में बीजेपी ने पिछली बार 10 में से नौ सीट तो पचास फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करके जीती, वहां आखिर क्यों अचानक मुख्यमंत्री बदले गए ?

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जहां विरोध मुख्यमंत्री के खिलाफ नहीं था, जहां सरकार को सीएम फेस पर फिलहाल कोई खतरा नहीं था, वहां पर मुख्यमंत्री क्यों अचानक बीजेपी ने बदल दिया ? अगर 97 दिन और मनोहर लाल खट्टर सीएम रह लेते तो हरियाणा के सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री बन जाते लेकिन उससे पहले विदाई हो गई. आखिर क्यों? इन सवालों के जवाब हर कोई जानना चाह रहा है.

पीएम ने की थी तारीफ

गठबंधन के साथ चलती सरकार से जेजेपी यानी दुष्यंत चौटाला से अलगाव हो गया. साथ ही सरकार में नंबर दो यानी डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला भी नहीं रहे. कल तक गृहमंत्री रहे अनिल विज शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए. लोग कहते हैं कि चुनाव में फूंक-फूंक कर कदम रखा जाता है. वहां पर हरियाणा में बीजेपी ने ‘आज कुछ तूफानी करते हैं’ वाले मोड में आखिर इतना बड़ा फैसला कैसे और क्यों ले लिया ? जहां सोमवार तक मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ प्रधानमंत्री अपने दरी के जमाने के किस्से सुनाते दिखे.

पीएम मोदी ने तब एक किस्सा सुनाते हुए कहा, ‘मनोहर और मैं पुराने साथी है. दरी का जमाना था, तब भी साथ सोते थे. मनोहर जी के पास एक मोटरसाइकिल रहती थी, वो मोटरसाइकिल चलाते पीछे बैठता था, रोहतक से निकलकर गुरुग्राम में रुकता. हमारा लगातार भ्रमण मोटरसाइकल से होता था..’

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खट्टर को हटाकर खट्टर के ही करीबी को मुख्यमंत्री बनाना. जाट वोट की सियासत वाले दुष्यंत चौटाला से चुनाव से पहले दूरी बनाना. गैर जाट सीएम पहले भी थे, फिर गैर जाट में ही ओबीसी वर्ग से सीएम चुनना तारीफ करके शांति से सीएम बदल देना. क्या इसी में हरियाणा के बदलाव की मनोहर सियासी कहानी छिपी है ? 

एक तीर- दो निशाने

दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सीटें आपस में बांट लीं लेकिन पंजाब में दोनों अलग अलग लड़ रहे हैं. क्योंकि नहीं चाहते कि किसी तीसरे को एंट्री पंजाब की सियासत में मिले. क्या कुछ ऐसा ही फॉर्मूला हरियाणा का बना है ? जहां कहा जा रहा है कि दुष्यंत चौटाला की पार्टी से दूरी बनाना और अपनी ही पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री को बदलना. इसमें एक तीर से दो निशाने साधे गए हैं. एक निशाना सत्ता विरोधी हवा को कंट्रोल करना और दूसरा निशाना दुष्यंत चौटाला को अकेले मैदान में छोड़कर कांग्रेस के जाट वोट का हिस्सा अकेले पाने से रोकना.

वोटों का गणित

अनिल विज हरियाणा में सरकार में अदला बदली से नाराज बताए जा रहे हैं जो शपथग्रहण में मौजूद नहीं थे. वह अंबाला में गोल गप्पे चटकारा लेकर खाते दिखे.जिस हरियाणा में लोकसभा चुनाव और अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होना है. वहां मनोहर लाल के खिलाफ सत्ता विरोधी हवा का डर था या फिर जाट वोट का एकजुट होकर कांग्रेस के पाले में जाने की आशंका ? इन दोनों आशंकाओं की सियासत में पहले वोट गणित समझिए-

2019 के लोकसभा चुनाव में एससी वोट का 58 फीसदी हिस्सा बीजेपी के खाते में गया था जबकि कांग्रेस 25 फीसदी वोट हासिल कर सकी थी. वहीं मुस्लिम वोट का बीजेपी 15 को प्रतिशत हिस्सा मिला जबकि कांग्रेस 76 फीसदी वोट मिले. वहीं जाट वोट का 39 फीसदी हिस्सा बीजेपी के हिस्से में आया जबकि कांग्रेस 40 फीसदी वोट हासिल कर सकी थी. वहीं बीजेपी के खाते में ओबीसी का 70 फीसदी वोट आया था जबकि कांग्रेस केवल 18 प्रतिशत ही हासिल कर सकी थी. वहीं सामान्य वर्ग से बीजेपी को 69 फीसदी मिले थे जबकि और कांग्रेस 21 फीसदी वोट ही हासिल कर सकी.

यानी मुस्लिम छोड़ इकलौता जाट वोट ही हरियाणा का ऐसा है, जिसमें बीजेपी चालीस फीसदी से नीचे का हिस्सा पाती है. तो क्या इसी से जुड़ी कोई रणनीति अपनी ही गठबंधन सरकार को हिला डुलाकर, सीएम बदल कर बीजेपी ने बनाया है ? 

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जाट वोट है असल वजह?

 कहने को कहा तो ये जाता है कि दुष्यंत चौटाला दो से तीन सीट लोकसभा की मांग रहे थे. बीजेपी ने नहीं दिया. खुद उन्हें सरकार से हटा सकते नहीं थे. लिहाजा पूरी कैबिनेट ने जाकर इस्तीफा दे दिया और सरकार बदल गई. लेकिन इसमें खेल है. खेल है जाट वोट का. हरियाणा में 25 फीसदी जाट वोट है जो बीजेपी और दुष्यंत चौटाला के एक साथ लड़ने पर कांग्रेस के पास ज्यादा जाता. लेकिन अब दुष्यंत चौटाला भी अलग से मैदान में होंगे तो जाट वोट के लिए जेजेपी, INLD और कांग्रेस के बीच बंटवारा होगा. जानकार कहते हैं फायदे की यही राजनीतिक रणनीति बीजेपी ने अपनाई है.

कांग्रेस के ओबीसी कार्ड का जवाब

 बीजेपी ने हरियाणा में ओबीसी वर्ग से आने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर एक और पिछड़े वर्ग के नेताओं को सीएम लिस्ट में शामिल कर दिया है. देश के चुनाव में जब कांग्रेस जाति गणना की मांग के साथ पिछड़ों को आरक्षण देने का वादा करती है. तब बीजेपी जरूर इस बात को याद कराएगी कि कांग्रेस ने देश में कितने ओबीसी सीएम बनाए और बीजेपी ने कितने ? 

आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं होते. कई बार वे कहानी भी कहते हैं. भारत जैसे सामाजिक विविधता वाले देश में चुनावी आंकड़ों से राजनीति विज्ञान के कई नई क्षेत्र खुलते हैं. निशांत रंजन द्वारा आजादी के बाद के मुख्यमंत्रियों की सामाजिक पृष्ठभूमि के संबंध में जुटाए गए आंकड़ों से पता चलता है कि बीजेपी ने अब तक जितने मुख्यमंत्री बनाए हैं, उनमें से 30.9 फीसदी ओबीसी हैं. जबकि कांग्रेस द्वारा बनाए गए मुख्यमंत्रियों में सिर्फ 17.3 फीसदी ओबीसी हैं. अन्य दलों के लिए ये आंकड़ा 28 फीसदी है.
 

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