Home Uncategorized कुदरत का करिश्मा, मां-बाप की जिद और जज्बा… मूसेवाला के घर नए मेहमान के आने की पूरी कहानी

कुदरत का करिश्मा, मां-बाप की जिद और जज्बा… मूसेवाला के घर नए मेहमान के आने की पूरी कहानी

कुदरत का करिश्मा, मां-बाप की जिद और जज्बा…  मूसेवाला के घर नए मेहमान के आने की पूरी कहानी

29 मई, 2022. दिन रविवार. शाम के 5 बजे. यही वो दिन तारीख और वक्त था, जब दुनिया भर में मशहूर पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की उन्हीं के गांव मूसेवाला में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. ये वो तारीख थी, जब घर का इकलौता चिराग हमेशा हमेशा के लिए बुझ गया था. 658 दिन बाद 17 मार्च 2024. दिन रविवार. सुबह के 5 बजे. पंजाब के बठिंडा का जिंदल हार्ट इंस्टीट्यूट एंड इनफर्टिलिटी सेंटर, जहां अब मूसेवाला का पुर्नजन्म हुआ है.

क्या खूब इत्तेफाक है. मौत का दिन भी रविवार. जिंदगी का दिन भी रविवार. डूबते सूरज के साथ सिद्धू मूसेवाला की जिंदगी डूबी थी. फिर 658 दिन बाद उगते सूरज के साथ फिर से एक जिंदगी उगी. ठीक 658 दिन बाद सिद्धू मूसेवाला लौट आया. उसी मां की कोख से, जिस मां की कोख को 658 दिन पहले चंद हत्यारों ने उजाड़ दिया था. कमाल कुदरत का करिश्मा है और ऊपर से कमाल उस मां-बाप का जज्बा, जिनकी जिद के आगे उम्र भी आड़े नहीं आई.

साइंस ने हौसलों का साथ दिया और सिद्धू मूसेवाला एक नए चेहरे के साथ फिर से जन्म ले लेता है. पंजाब के मानसा का मूसेवाला गांव में इस वक्त जश्न का माहौल है. इसी गांव में 31 साल पहले साल 1993 में सीनियर सिद्धू मूसेवाला का जन्म हुआ था. अब 31 साल बाद फिर से चरण कौर और बलकौर सिंह के घर आए जूनियर मूसेवाला के स्वागत में पूरा गांव जश्न मना रहा है. उसके चाहने वाले पटाखे जलाकर, गुलाल उड़ा कर अपनी खुशियों का इजहार कर रहे हैं.

सिद्धू मूसेवाला के लौट आने की कहानी महज एक इत्तेफाक नहीं है. बल्कि ये एक मां-बाप यानी चरण कौर और बलकौर सिंह की एक ऐसी लड़ाई का नतीजा है, जिस लड़ाई को जीतने की कसम उन्होंने सिद्धू मूसेवाला की चिता पर खाई थी. उस रोज़ इस बुजुर्ग मां बाप ने दो कसम खाई थी. पहली वो मूसेवाला के कातिलों को उसके अंजाम तक पहुंचाने से पहले चैन की सांस नहीं लेंगे और दूसरी वो एक बार फिर से सिद्धू को अपने घर के आंगन में लाएंगे.

पहली कसम तो कानून की लड़ाई से जुड़ी थी. लेकिन दूसरी कसम उससे कहीं ज्यादा बड़ी लड़ाई थी. 60 और 55 की उम्र में फिर से मां बाप बनना वो भी तब जबकि घर के इकलौते चिराग को बड़ी बेरहमी से बुझा दिया गया हो, आसान नहीं था. लेकिन ये फैसला तो 31 मई 2022 को ही ठीक इसी जगह यानी सिद्धू की चिता पर लिया जा चुका था. मां-बाप ने तय कर लिया था कि इंसाफ की लड़ाई अगर लंबी चली तो उनके बाद जूनियर सिद्धू लड़ाई को आगे बढ़ाएगा.

वो कातिलों को उसके अंजाम तक पहुंचा कर रहेंगे. इसके बाद से ही जूनियर सिद्धू मूसेवाला को इस दुनिया में लाने के लिए डॉक्टरों से संपर्क साधना शुरू कर दिया गया. साल 2023 में चरण कौर और बलकौर सिंह कुछ महीनों के लिए विदेश गए थे. पहली बार विदेश में ही दोनों ने डॉक्टरों से सलाह ली. उम्र और सेहत को देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें आईवीएफ के जरिए पेरेंट्स बनने का सुझाव दिया. आईवीएफ प्रेगनेंसी का एक ऐसा जरिया जिसे टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहते हैं.

पंजाब लौटने के बाद दोनों ने डॉक्टरों से संपर्क साधा. इसमें एक लंबा वक्त निकल गया. आखिरकार बठिंडा के जिंदल हार्ट इंस्टीट्यूट एंड इनफर्टिलिटी सेंटर में इलाज शुरू हुआ. इस दौरान कई मुश्किलें भी आईं. लेकिन मां-बाप की कड़ी प्रतिज्ञा के आगे वो तमाम मुश्किलें आसान होती गई. आखिरकार 17 मार्च की सुबह ठीक पांच बजे बठिंडा के अस्पताल में चरण कौर ने एक बेटे को जन्म दिया. उसके जन्म की खबर सुनते ही दोनों की जिंदगी एक बार फिर से जिंदा हो उठी.

नए मेहमान का नाम शुभदीप सिंह रखा गया है. क्योंकि ये नाम पहले से तय था. तय इसलिए कि सिद्धू मूसेवाला का असली नाम भी शुभदीप सिंह ही था. सिद्धू मूसेवाला नाम तो संगीत की दुनिया ने उसे दिया था. 11 जून 1993 को चरण कौर और बलकौर सिंह के घर शुभदीप सिंह का जन्म हुआ था. तब गांव वाले उसे प्यार से गग्गू नाम से पुकारा करते थे. इन्हीं गलियों में खेलता कूदता गग्गू बड़ा हुआ. बड़ा होने के बाद लुधियाना से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.

पढ़ाई के दौरान ही उसे गायकी का शौक हुआ और फिर पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए कनाडा चला गया. साल 2018 में कनाडा से पंजाब लौटने के बाद शुभदीप सिंह ने गाना गाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते देश विदेश में वो छा गया. इसी गायकी की वजह से ही बाद में शुभदीप ने अपना नाम शुभदीप की बजाय सिद्धू मूसेवाला रख दिया. मूसेवाला उसके गांव का नाम था. उसके गांव के लोग आज भी उसे याद करते हैं.

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